Thursday 28 January 2016

बचपन !

For the first time ever, tried my hand at writing a poem, that too in Hindi. I know this is nothing like a professional poem, will sound amateur, but the views expressed are true and honest. Like and share if you connect with the feeling too!



दिल करता है फिर लौट जाऊ

उस टेंशन फ्री बचपन में कहीं
खेलु, कुदु, सपने देखू
और लौटू कभी हकीकत में नहीं

वो भी कितने प्यारे दिन थे
जब होमवर्क सबसे बड़ा टेंशन था
कब होंगे हम पापा मम्मी जितने बड़े
बस यही एक ग़म था

आज बड़े तो हो गए
पर संतुष्टि उसमे मिलती नहीं
दिल करता है फिर लौट जाऊ
उस टेंशन फ्री बचपन में कहीं

Exam खत्म होने पर मनाते थे कितनी ख़ुशी
Cycle लेकर जाते थे घूमने हर कहीं
याद है highway पर आलीशान गाड़ियां देखकर
महसूस करते थे कितनी कमी?

आज parking lot में खड़ी है वो सपनों की गाडी
पर उसमे cycle चलाने का मज़ा आता नहीं
दिल करता है फिर लौट जाऊ
उस टेंशन फ्री बचपन में कहीं

दोपहर को homework खत्म कर
शाम को खेलने का मज़ा ही कुछ और था
खो खो  पकड़ा पकड़ी, stop party
भागम दौड़ का वो दौर था

आज भी भागते है ट्रैन के पीछे
पर उसमे पकड़ा पकड़ी का मज़ा आता नहीं
दिल करता है फिर लौट जाऊ
उस टेंशन फ्री बचपन में कहीं

हर सुबह उठकर स्कूल जाने से कतराते थे
मम्मी उठाती तो सोने की ज़िद किया करते थे
स्कूल से आते आते pepsi cola लेना रिवाज़ था
शाम को रात में ढलते देख कितना मज़ा आता था

अब ऑफिस से घर पहुँचते है
तो दुकानें भी खुली रहती नहीं
दिल करता है फिर लौट जाऊ
उस टेंशन फ्री बचपन में कहीं

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